'मुसाफिर' किसी शहर का नहीं होता है
जो इश्क करता है, उसे फर्ज निभाना होता है,
बेवफाई करने वाला, सच्चा हमसफ़र नहीं होता है ।
जो ठोकर खाता है, जख्मों पर खुद मरहम लगाता है ,
समझदार इंसान, पत्थर पर सर नहीं पटकता है ।
जो सच्ची मोहब्बत करता है, रूठता कभी नहीं है ।
हाथों में मेहंदी रचाकर, खुद मिटाता कोई नहीं है ।
जो धोखा खाता है, संभलकर दुबारा मोहब्बत करता है ,
कांटों का चुभा, नया फूल तमीज से निकलता है ।
जो याद में रोता है, आँसुओं का गुनहगार खुद होता है ,
मुसाफिर' किसी शहर का नहीं होता है।