Thursday, July 15, 2021

"कंचे जैसे दोस्त"

 "कंचे जैसे दोस्त"

एक बच्चा

जब समेटता है

अपने गिरे कंचों को

खुले मुंह के डब्बे में,

उठाकर डाल देता है

बहुत आसानी से

पहले कंचे को

खुले मुंह के डब्बे में,

ज्यों ही झुकता है

उठाने को दूसरा कंचा,

मुट्ठी में आ भी जाए

पर गिर जाता पहला कंचा,

डालकर डब्बे में दूसरा कंचा

ज्यों ही झुकता है

उठानें को अगला कंचा

फिर गिर जाता है पिछला कंचा,

बार बार कोशिश करे

लाख बार कोशिश करे

लेकिन हाथ में आये

सिर्फ एक ही कंचा,

खुले मुंह के डब्बे जैसी जिन्दगी

कंचों जैसे दोस्त

बन जाते आसानी से नये रिश्ते

लेकिन छुट जाते हैं पुराने दोस्त,

"कोलतार में दबी झोपडिया"

"कोलतार में दबी झोपडिया"


सडक वाले बाबू ,
आपने भी देखी मेरी कुटिया ||

यहीं तो थी,
अम्मा ने हफ्ते भर बटोरे थे बसंठियॉ ,
मैंने और छुटकी ने भी
दिनभर समेेटे थे धगियॉं,
धूप तपकर अब्बा ने बुनी,
तब खडी हुई झोपटिया,

अरे सडक वाले बाबू,
कहॉं खो गयी,
कहीं दिखती नहीं
वह टपटपकिया,

सडक वाले बाबू ,
कोलतार हटाओ ,
क्यों दबायी हमारी बिसरिया,

अरे अब्बा कैसे बनायेंगे दथढियॉ,
कौन कमायेगा रूपइयॉं,

अरे सुनो तो,
सडक वाले बाबू,
कहॉं सेकेगी अब अम्मा रोटियॉं,
क्या खायेगी छुटिया,
दादू भी तो बीमार हैं,
कहॉं बितायेंगे वो रतियॉं,

अरे भागते कहॉं हो ,
सुनो तो,
अरे सडक वाले बाबू ,
सुनो तो,
अरे, .......अरे...........|


'मुसाफिर' किसी शहर का नहीं होता है

'मुसाफिर '   किसी  शहर   का   नहीं  होता है   जो इश्क करता है , उसे फर्ज निभाना होता है , बेवफाई करने वाला , सच्चा हमसफ़र नही...