Thursday, July 15, 2021

"चलो आज एक सफर पर चलते हैं"

"चलो आज एक सफर पर चलते हैं"

 

चलो आज एक सफर पर चलते हैं,

 

शहर की भीड़ से कहीं दूर चलते हैं

चलो आज एक सफर पर चलते हैं,

 

छोड जाते हैं दर्द को मीठी बातें करने चलते हैं

चलो आज एक सफर पर चलते हैं,

 

दम घोटते दफ्तरों से एकांत की ओर बढ़ते हैं

चलो आज एक सफर पर चलते हैं,

 

तोड़कर हर बंधन को आओ आवारा घूमते है

चलो आज एक सफर पर चलते हैं,

 

अब शाम बिताने के लिए कहीं और चलते हैं

चलो आज एक सफर पर चलते हैं,

 

विराने पहाड़ों मे आवाज टकराकर सुनने चलते हैं

चलो आज एक सफर पर चलते हैं,

 

छोड देते हैं लाज को आऔ अब बच्चे बनते हैं

चलो आज एक सफर पर चलते हैं,

 

खुद को खुद से महसूस करने चलते है

चलो आज एक सफर पर चलते हैं,

 

लौट ना सकें दुबारा, रास्तों को भूलकर बढते हैं

चलो आज एक सफर पर चलते हैं,

 

   चलो आज एक सफर पर चलते हैं.......l

 

"कंचे जैसे दोस्त"

 "कंचे जैसे दोस्त"

एक बच्चा

जब समेटता है

अपने गिरे कंचों को

खुले मुंह के डब्बे में,

उठाकर डाल देता है

बहुत आसानी से

पहले कंचे को

खुले मुंह के डब्बे में,

ज्यों ही झुकता है

उठाने को दूसरा कंचा,

मुट्ठी में आ भी जाए

पर गिर जाता पहला कंचा,

डालकर डब्बे में दूसरा कंचा

ज्यों ही झुकता है

उठानें को अगला कंचा

फिर गिर जाता है पिछला कंचा,

बार बार कोशिश करे

लाख बार कोशिश करे

लेकिन हाथ में आये

सिर्फ एक ही कंचा,

खुले मुंह के डब्बे जैसी जिन्दगी

कंचों जैसे दोस्त

बन जाते आसानी से नये रिश्ते

लेकिन छुट जाते हैं पुराने दोस्त,

'मुसाफिर' किसी शहर का नहीं होता है

'मुसाफिर '   किसी  शहर   का   नहीं  होता है   जो इश्क करता है , उसे फर्ज निभाना होता है , बेवफाई करने वाला , सच्चा हमसफ़र नही...